Thursday, 22 August 2019

सफर

एक चुप संघर्ष: इंसानियत और शिक्षा के लिए चल पड़ा मेरा क़दम 

शुरुआत में मैं एक ऐसे इंस्टीट्यूट में पढ़ाने जाया करती थी जो कम फीस में ग़रीब बच्चों को पढ़ाया करता था। वहाँ मैं फ्री में पढ़ाती थी। मेरे साथ दीक्षा अरोरा जैसी कई साथी भी थीं जो हर रोज़ मेरे साथ जाती थीं। उस समय मैं 12वीं कक्षा में थी।

एग्ज़ाम हो चुके थे और गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं। सुबह की सैर करने मैं सुभाष पार्क जाया करती थी। वहीं थोड़ी दूर पर एक जामुन का पेड़ था जहाँ कुछ लोग रोज़ सैर के बाद जामुन तोड़ने आते थे। एक दिन मैं भी जामुन तोड़ने पहुँची। हमने नीचे जाल बिछा रखा था ताकि गिरे हुए जामुन इकट्ठे हो जाएँ। कुछ जामुन सीधे कीचड़ और गंदगी में जा गिरे।

उन्हीं दिनों वहाँ मूर्तियाँ बनाने वाले एक मोहल्ले के कुछ बच्चे आए और उन्होंने वहीं गंदे जामुन उठाकर खाना शुरू कर दिया। मैं हैरान रह गई।

मैंने पूछा — "क्या आप स्कूल जाते हो?"
बच्चों ने कहा — "नहीं।"

अगले दिन मैं फिर वहाँ गई। मैंने उनसे बात की और उन्हें पढ़ाने जाने लगी। कॉलेज में जाने के बाद मैंने अपने कुछ दोस्तों से बात की और उन्हें भी इस काम में जोड़ा। फिर हमने उन बच्चों का स्कूल में दाख़िला करवाया। शुरू में वे सिर्फ़ पाँच बच्चे थे। इस सफ़र में SD कॉलेज के प्रिंसिपल सर का सहयोग बहुत रहा। उन्होंने कॉलेज की फ्री लैब में बाहर जाकर पढ़ाने की अनुमति दी।

इसी दौरान मैं हर रविवार Robinhood Army नामक संस्था के साथ भूखे लोगों को खाना बाँटने जाया करती थी। वहीं मेरी मुलाक़ात अंकित रोहिल्ला से हुई जो अपने दोस्तों हिमांशु और वैभव के साथ स्लम बच्चों को पढ़ाते थे। मैं उनके ग्रुप "विनाया" से जुड़ गई। फिर SD कॉलेज में ही अमनदीप कौशिश भैया से मिली और उन्हें भी विनाया से जोड़ा।

हमने मिलकर गांधी ग्राउंड में बच्चों को सावधानी से पढ़ाना शुरू किया। बच्चे शुरुआत में गालियाँ देते, हाथ नोचते, भाग जाते। पढ़ाई में मन नहीं लगता। पर हम उन्हें पकड़कर लाते और पढ़ाते। फिर धीरे-धीरे वही बच्चे अब साथ देने लगे।

समय बदला, कॉलेज ख़त्म हुआ, कुछ दोस्त नौकरी में लग गए, और ग्रुप धीरे-धीरे बिखर गया। मेरे पिताजी का देहांत हो गया और फिर मैं भी पीछे हट गई।

एक रात जब मन बेचैन था, तब मैंने अपने एक बहुत ही ख़ास मित्र से बात की जो उन दिनों फेसबुक पर मिले थे। उन्होंने मेरा बहुत हौसला बढ़ाया। उनका नाम जोगिंदर माहौर था जो उस समय Simplify Institute चलाते थे। उन्हीं की मदद से हमने पहला इवेंट किया जिसमें 200 गरीब परिवारों को वस्त्र इकठ्ठा करके बाँटे।

इसके बाद मैंने कुछ और दोस्तों को जोड़ा — नेहा चौहान, भरत महिन्द्रता, प्रशांत चालिया, दीपक लाखी, विशाल वर्मा, अंकित रोहिल्ला, हिमांशु जैन, जोगिंदर माहौर — और एक NGO शुरू किया जिसका नाम रखा Idrish Foundation, मेरे पिताजी के नाम पर।

मैंने KUK NGO के गौरव जी से बात की और उन्होंने बहुत सहयोग किया।

हमारा पहला प्रोजेक्ट Project Evening Class था — हर रविवार बच्चों को उनके इलाके में जाकर पढ़ाना। फिर हमने एक ऐसा इलाका शुरू किया जहाँ बच्चे भीख माँगा करते थे। वहाँ के 25 बच्चों को स्कूल में दाख़िला दिलवाया।

बच्चों के पास कोई दस्तावेज़ नहीं था, स्कूल वाले मना कर देते थे। हमने अपने पते और नंबर से बच्चों के आधार बनवाए। डीसी मैम के ऑर्डर से सभी सरकारी स्कूलों में दाख़िले हुए। 2016 में हमने बच्चों को स्कूल में दाख़िल करवाया।

अब हमारी Evening Classes में 300+ बच्चे पढ़ते हैं जो मज़दूर परिवारों और गरीब छात्र हैं।

दूसरा प्रोजेक्ट — Project Care
इसमें हम होनहार लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों को गोद लेते हैं और उनकी फीस भरते हैं। सभी वालंटियर्स हर महीने कुछ-न-कुछ योगदान करते हैं। 2019 में 25 बच्चों को प्रोजेक्ट केयर के तहत गोद लिया गया था।

जो शुरुआत सिर्फ़ पाँच बच्चों से हुई थी, वो अब 300+ बच्चों तक पहुँच चुकी है।

कुछ अधूरे काम भी रह गए। कई बच्चों को हमने स्कूल पहुँचाया, पर कुछ अब भी भीख माँगते हैं। ये हमारी असफलता रही। लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी हम नहीं, वो माहौल है।

हमारा समाज 10 रुपये देकर खुश होता है कि उसने अच्छा किया, पर वो बच्चों की आदतें और मज़बूत कर देता है।

मैं सबसे निवेदन करती हूँ — कृपया किसी बच्चे को भीख मत दीजिए। उसकी ज़रूरत पहचानिए और उसके भविष्य को सुधारिए।

अब जब मैं Masters of Social Work कर रही हूँ, तो समझ में आया कि “सोशल वर्क” क्या होता है।

मेरा सपना — हर बच्चे के लिए शिक्षा

जब मैं सेकंड ईयर में थी, मेरे पापा का देहांत हुआ। घर चलाना मुश्किल था। पढ़ाई रुक गई। मैंने एक संस्था से अपने भाई की पढ़ाई के लिए मदद के लिए संपर्क किया — कोई जवाब नहीं आया। मुझे कॉलेज छोड़कर 8000 रुपये की नौकरी करनी पड़ी।

फिर मैंने अपने घर से शुरुआत की। भाई की फीस भरी और सोचा — जैसे मैं लड़ी, वैसे कई और बच्चे भी लड़ रहे होंगे। मैं उनके लिए कुछ करूंगी।

प्रोजेक्ट केयर की सोच यहीं से आई।

अब हमारा सपना है —
एक ऐसा स्कूल, जहाँ वे बच्चे जो काम करते हैं, कूड़ा बीनते हैं, भीख माँगते हैं, या घरेलू काम करते हैं — शाम को पढ़ सकें।
एक Evening & Night School, जहाँ उनके समय, परिस्थिति और आत्म-सम्मान का ख़्याल रखते हुए, उन्हें शिक्षा दी जा सके।

शिक्षा मिनरल वाटर जैसी नहीं, बल्कि मंदिर के प्रसाद जैसी होनी चाहिए — जो सभी के लिए सुलभ, पवित्र और समान हो।

सफ़र 0.2: 2019 के बाद की चुनौती

कोविड आया... बच्चों की पढ़ाई रुक गई। जो पढ़ भी रहे थे, वे अब भीख माँगने लगे। वालंटियर्स कम हो गए। फिर भी हमने 100 परिवारों को राशन पहुँचाया। बच्चों की और उनके परिवार की काउंसलिंग की।

फिर से टांगरी एरिया में शुरुआत की — 30 बच्चों से। इसमें मिस्टर दीपांश का बहुत सहयोग रहा। उनकी फैमिली ने हमें अपना घर और छत पढ़ाने के लिए दी।

वॉलंटियर्स की कमी, आर्थिक तंगी, पुरानी क्लासेस का बंद हो जाना — सब मुश्किलें थीं।
Project Care के 26 बच्चों को अलग-अलग जगह स्पॉन्सर किया गया। हम सिर्फ़ 6 बच्चों को साथ रख पाए।

कुछ वालंटियर्स में ग्रुपिज़्म और मनमुटाव बढ़ा। कुछ ने अपनी अलग NGO बना ली। टीम बिखरने लगी। लेकिन अमनदीप कौशिश, अभिषेक पाठक, तरुण अग्रवाल, डॉ. रजिंद्रा मैम, अंकित रोहिल्ला — ये लोग डटे रहे। हमारा मक़सद साफ़ था — भले कम करें, पर सच्चे मन से करें।

2019 से 2022 तक का समय मुश्किल भरा था, लेकिन सफ़र जारी रहा।

2025 तक की स्थिति

आज हमारी Evening Classes में 300+ बच्चे पढ़ते हैं।
Project Care में 34 बच्चे गोद लिए जा चुके हैं।
हमारी Free Library से 100 बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।

हमारी टीम में 40+ सदस्य हैं। लीडरशिप में वंदना, नीलिमा, अभिषेक चौहान, करिश्मा कौशल, दीक्षा शर्मा, उदय पासी, महक जैन हैं।
BOD में अमनदीप कौशिश, अभिषेक पाठक, तरुण हैं।

अब हमारा अगला कदम —
एक Evening cum Night School —
जहाँ वे बच्चे जो दिन भर काम करते हैं, भीख माँगते हैं या घरों में काम करते हैं, वे शाम को आकर
सम्मान के साथ शिक्षा प्राप्त कर सकें।

क्योंकि शिक्षा ही परम धर्म है।

1 comment:

  1. आपकी स्टोरी बहुत ज्यादा प्रेरणा दायक है। तथा बहुत दर्द भी शामिल हैं। लेकिन आपके होंसले ओर दरड़ निश्चय से आपने अपने आपको उस मुकाम पे पहुचा लिया, जिस मुकाम का अपने सपना देखा था । में आपके साथ हु ,

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