हाँ मैं नास्तिक हूँ ।
हाँ मैं नास्तिक हूँ मुझे गर्व है मैं भगवान के नाम पर किसी से लड़ती नही,
न मंदिर मस्जिद के चक्करो में पड़ती हूँ।
मैं किसी को ये नही कहती के मेरा धर्म महान न नफरत के बीज बोती हूँ ।
मैं रंगों के आधार पर इंसानों को नही बांटती, न नाम के आधार पर भेद करती हूँ ,
हाँ मैं नास्तिक हूँ और मुझे गर्व है अपने नास्तिक होने पर ,,
मैं अनुभूतियों में विश्वास करती हूँ अंधविश्वासों में पड़ती नही।
अपने अंदर ही मैंने भगवान को देखा है इसलिए उसे पथरों में ढूंढती नही ।
न अज़ान से मुझको मतलब है न मंदिर के जयकारों से,
मैं गिरजाघर भी जाती हूँ और जाती हूँ गुरुद्वारे भी ,
मैं पढ़ती हूँ कुरान गीता और सुखमणि साहिब का पाठ भी,,
है बाईबल मुझको उतना ही प्रिय जितना के रामायण का पाठ है ।
ये सब ज्ञान के स्रोत है नही इसमें भेद कोई ,सबसे कुछ न कुछ सीखा है पर माना है जो हो सही ।।
अच्छा लगता है होली भी और मुझको दीवाली भी ,,
मैं ईद पे सेवइयां खाती हूँ क्रिसमस पे चर्च भी जाती हूँ।
जब मन हो मंदिर भी चली जाती हूँ गुरुद्वारे सिर भी झुकाती हूँ, दरगाह की सुंगन्ध मुझे भाए और चर्च में चुप चाप बैठ जाती हूँ।
मैं जीवन के हर एक पहलू को जीती हूँ खुश होकर मेरे लिए तो सब एक जैसे है किसी में कोई भेद नही ।
हाँ मैं नास्तिक हूँ और मुझे गर्व है मेरे नास्तिक होने पर।
मैं खुश हूँ मैं उन जैसी नही जो धर्म के नाम पर लड़ते है ।
कपड़े के रंगों और नामो से इंसान की पहचान करते है ।।
किसी गरीब की मदद करने से पहले उसका भगवान पूछते है।
आस्था के नाम पर कई कुर्बानियां करते हैं।।
जानवर ज्यादा प्यारे है इंसान की कोई कीमत नही,
खून इंसान का पानी हर धर्म की यही कहानी है।।
अंधविश्वास का टीका अपने माथे पोते फिरते है ।
चाहे दे दो इनको अमृत भी ,
ये खून के प्यासे फिरते है ।।
नाम खुदा का रखते है, बदनाम खुदा को करते है ,,झूठी आस्था का दावा कर , भगवान को भी कटघरे में खड़ा होने को मजबूर करते है।
न तर्क वितर्क का ज्ञान है इनको,
ये विज्ञान से भी लड़ते है,
और नफरत की खेती करते करते सच को अनदेखा करते है।
हाँ मैं नही हूँ आस्तिक, मैं नास्तिकता में आस्था रखती हूँ।
सबकी नजरो में नास्तिक और खुद में आस्था रखती हूँ ।।
हाँ मैं नास्तिक हूँ मुझे गर्व है मैं भगवान के नाम पर किसी से लड़ती नही,
न मंदिर मस्जिद के चक्करो में पड़ती हूँ।
मैं किसी को ये नही कहती के मेरा धर्म महान न नफरत के बीज बोती हूँ ।
मैं रंगों के आधार पर इंसानों को नही बांटती, न नाम के आधार पर भेद करती हूँ ,
हाँ मैं नास्तिक हूँ और मुझे गर्व है अपने नास्तिक होने पर ,,
मैं अनुभूतियों में विश्वास करती हूँ अंधविश्वासों में पड़ती नही।
अपने अंदर ही मैंने भगवान को देखा है इसलिए उसे पथरों में ढूंढती नही ।
न अज़ान से मुझको मतलब है न मंदिर के जयकारों से,
मैं गिरजाघर भी जाती हूँ और जाती हूँ गुरुद्वारे भी ,
मैं पढ़ती हूँ कुरान गीता और सुखमणि साहिब का पाठ भी,,
है बाईबल मुझको उतना ही प्रिय जितना के रामायण का पाठ है ।
ये सब ज्ञान के स्रोत है नही इसमें भेद कोई ,सबसे कुछ न कुछ सीखा है पर माना है जो हो सही ।।
अच्छा लगता है होली भी और मुझको दीवाली भी ,,
मैं ईद पे सेवइयां खाती हूँ क्रिसमस पे चर्च भी जाती हूँ।
जब मन हो मंदिर भी चली जाती हूँ गुरुद्वारे सिर भी झुकाती हूँ, दरगाह की सुंगन्ध मुझे भाए और चर्च में चुप चाप बैठ जाती हूँ।
मैं जीवन के हर एक पहलू को जीती हूँ खुश होकर मेरे लिए तो सब एक जैसे है किसी में कोई भेद नही ।
हाँ मैं नास्तिक हूँ और मुझे गर्व है मेरे नास्तिक होने पर।
मैं खुश हूँ मैं उन जैसी नही जो धर्म के नाम पर लड़ते है ।
कपड़े के रंगों और नामो से इंसान की पहचान करते है ।।
किसी गरीब की मदद करने से पहले उसका भगवान पूछते है।
आस्था के नाम पर कई कुर्बानियां करते हैं।।
जानवर ज्यादा प्यारे है इंसान की कोई कीमत नही,
खून इंसान का पानी हर धर्म की यही कहानी है।।
अंधविश्वास का टीका अपने माथे पोते फिरते है ।
चाहे दे दो इनको अमृत भी ,
ये खून के प्यासे फिरते है ।।
नाम खुदा का रखते है, बदनाम खुदा को करते है ,,झूठी आस्था का दावा कर , भगवान को भी कटघरे में खड़ा होने को मजबूर करते है।
न तर्क वितर्क का ज्ञान है इनको,
ये विज्ञान से भी लड़ते है,
और नफरत की खेती करते करते सच को अनदेखा करते है।
हाँ मैं नही हूँ आस्तिक, मैं नास्तिकता में आस्था रखती हूँ।
सबकी नजरो में नास्तिक और खुद में आस्था रखती हूँ ।।
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