Thursday, 22 November 2018

फासला ख़्वाब से हक़ीक़त का

कल घर पर दावत थी , अच्छे पकवान बने मेहमान भी आए और सबने पकवानों का आनंद उठाया , रात करीब 9 बजे ही तबियत ज्यादा ख़राब लगी तो रज़ाई लेकर लेटी ही थी के नींद आगयी , ।
किसी को ख़बर ना थी किसी को ख्याल ना आया ,, के आज मैंने खाना नही खाया ,,
सुबह से आफिस और शाम को घर भूख लगना तो लाज़मी है । लेकिन नींद आगयी तो क्या कर सकते थे ।
सुबह 5 बजे आँख खुली ,, सिर दर्द से फट रहा था और कान में दर्द के कारण कुछ भी करने की या बोलने की हिम्मत नही थी , तो जैसे उठी थी वैसे ही रज़ाई दुबारा लेकर सोने लगी तभी याद आया रात का देखा हुआ सपना ,,
सपने का जिक्र कुछ इस तरह था ,-

मैं सो रही हूँ तभी पापा आते है , वही क्रीम कलर की शर्ट ब्लैक पैंट एक जैकेट हल्के काले रंग की और वही सफेद कलर का मफ़लर जो मैंने बनाया था पहली बार बुनाई सीखते हुए ,
मफ़लर पूरे चेहरे पर लपेट रखा था , अपना हेलमेट फ्रिज के ऊपर रखते हुए अम्मी से सारे कहाँ हैं ,
अम्मी - सभी लाडली सो गयी है और वो दोनों TV देख रहे है ।
पापा - इतनी जल्दी सो गयी लाडली ?
क्या हुआ है तबियत तो ठीक है ना
अम्मी - हाँ तबियत तो ठीक ही थी ।
पापा - खाना खाया उसने
अम्मी -पता नही ,शायद नही खाया
पापा- लाडो लाडो उठ !
मैं उठती नही तब भी
पापा गुस्से में,,
जल्दी उठो और खाना खाओ ,
मैं तेज़ी से उठ जाती हूँ ।
पापा - क्या हुआ तबियत ठीक तो है ना ऐसे इतनी जल्दी सो गए ,।
लाडली - ठीक हूँ अब्बा ।
पापा - खाना क्यों नही खाया , अब जाओ और मुँह धो कर आओ।
लाडली - ठीक है अब्बा ।
तभी लाडली मुँह धो कर आ जाती है ,

पापा -खाना ले आओ ।
और कल दिन में डॉ पे चलना है ।
लाडली -ठीक है अब्बा ।

खाने में पनीर और चावल थे अब लेकर बैठे तो खाने का मन ना किया लेकिन सामने अब्बा जो थे डर के मारे सारा खाना खत्म किया फिर जाकर रजाई ली और सो गयी ।

सुबह 5.30 हो चुके थे,, सपना था वो हक़ीक़त नही  वो नही है,,,; हक़ीक़त है ये ,,,वो अब्बा का नींद से उठाना डांट कर खाना खिलाना ना बताते हुए भी बीमार हूँ उनको पता लग जाना ,जो पल अभी कुछ लम्हे पहले जिया जिस केअर को महसूस किया जो डांट परवाह वाली अभी सुनी , जो ना मन होते हुए भी खाना खाया वो डर वो परवाह वो सब सपना था सिर्फ सपना ,,।
हक़ीक़त नही ,,
हक़ीक़त तो बस अभी ये आँसू थे जो लगातार बह रहे थे ,
हक़ीक़त तो ये दर्द था जो लगातार बढ़ रहा था , इसलिए नही के मैं खुद जाकर दवाई नही ले सकती थी ,, इसलिए नही के मैं खुद का ख्याल नही रख सकती थी ,
रख रही हूँ पिछले कई बरसों से ,
आदत भी हो गयी है खुद की अब ,,ये सब सपना था बस सोचते हुए आंखे भीगी हुई थी ,और मन हल्का सा,, भर गया था ।

लेकिन तब उनकी याद आती है ।
जब कोई दर्द मुझे सताती है ।
जब रोती हूँ कभी छुप के।
और ये आंखे सूज जाती है ।
हां सपने में उन्हें तब मैं देख पाती हूँ।
है लालच मेरे मन का जो मुझको रुलाता है ,।
खुश होता है आँखों को रुला कर ये ,,
इसी बहाने ये उनको देख पाता है ।
जब उनका चेहरा इन आँखों को दिख जाता है,
दर्द में भी ये ज़ोरो से मुश्कुरता है ।।
है पेट की भूख नही पापा जो भर जाए आसानी से,
ये भूख तब मिटती है ,, जब ये आपसे डांट खाता हैं।।
बड़ा मासूम है ये दिल , जो याद करता है आपकी मार को भी ,
जो मरता है बस डांट खाने के लिए आपसे ,
ये आंखे बार बार बहती है , जब वो लम्हा याद आता है ,,
थे कैसे सामने सोये ना उठने के लिए कभी वो जोड़ा आपका आखरी अभी भी याद आता है,,
वो आपका जूता सम्भाला है बहुत मैंने ,
वो आपकी जेब की डायरी वो निकला आपका कलम ,,है मेरे पास अब भी ,, मुझे वो बहुत रुलाता है ।
मैं रोइ थी बहुत गले लग कर आपके पापा , थे नींद में गहरी न जाने कैसी तुम पापा ,।।
थे मैंने पैर भी पकड़े के उठ जाओ न एक बार ,
न जाने कैसे नाराज थे उस दिन तुम पापा,
थे कैसे सोये हुए मेरे सामने गहरी नींद में पापा ,
समय भी रुक गया था उस दिन मेरे लिए पापा ,
थी बस एक ही दुआ उस दिन रब से मेरी पापा,
चाहे साँसे लेलो मेरी ,मेरे पापा में वो भर दो , इस गहरी नींद से उठा कर सामने मेरे खड़ा कर दो ,
लग रहा था जैसे अब उठे ,,लगा लोगे गले आकर ,
मेरा रोना ना भाता था तुम्हे बस चुप करा दोगे आकर ,
आज भी जब वो मंजर याद आता है,
मेरी आंखों का समंदर न खुद को रोक पाता है।।

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