Tuesday, 15 April 2025

तुम आ जाओ

"बहुत दर्द है मुस्कान के पीछे...  
काश पापा की तरह ये दुनिया भी समझ पाती,  
तो सोए हुए में उठाकर कहती —  
'हाय! मेरा बच्चा भूखा न सो जाए',  
और एक ग्लास दूध ही पिला देती...

अब सँभलता नहीं ये दुनियादारी मुझसे,  
एक बार तो आजाओ, मुझे समझाने...  
पापा, एक बार मुझे हँसकर गले से लगाने।

ये पैसे कमाना, ये दुनियादारी चलाना  
मुझे बहुत महँगा लगता है।  
कितना अच्छा था वो —  
शाम को आपका टॉफी लेकर आना,  
स्कूल जाते वक़्त 1 रुपये पॉकेट मनी देना...

अब तो ये 10,000 रुपये भी कम पड़ जाते हैं महीने के,  
वो 1 रुपये में जो सुकून ख़रीद लाती थी...

सब कुछ क्यों मैं ही क्यों सोचूं हमेशा?  
सब कुछ मैं ही क्यों समझूं हमेशा?  
कोई तो समझे मुझे भी आकर...

पापा —  
तुम आ जाओ, अल्लाह से बहाना बनाकर,  
कि ज़रूरत तुम्हारी है मुझे हमेशा।  
ये दुनियादारी हर बार मारती है तमाचा..

एक बार बस आ जाओ बनकर सहारा,  
मैं जाने न दूँगी तुम्हें दोबारा..."

---np

Monday, 7 April 2025

उसके होते हुए तुम कैसे भटक सकते हो...?


"तुम मुझे इतना क्यों परेशान कर रहे हो...  
क्यों मुझे रोज़ मुश्किलों में डाल रहे हो...  
क्यों इतना रुला, सता रहे हो...?"

रब ने फ़रमाया:  
“तुम भटक न जाओ, इसलिए...  
यही तुम्हारी परीक्षाहै —  
कि इन परेशानियों में तुम किसके पास जाते हो...?  
किससे मांगते हो...? किसका सहारा लेते हो...?  
अपना रब किसे बनाते हो...?”

और ये तब तक तय रहेगा,  
जब तक तुम मुझ तक वापस न आ जाओ...

बेहतर है तुम भटको नहीं...  
और उस रास्ते पर चलो  
जिसके लिए तुम्हें आज़माया गया है...”

आमीन...!  
अल्लाह सब बेहतर करने वाला है...  
जिसके नाम से ही सारे दुख दूर हो जाते हैं,  
वो "मुश्‍किलकुशा" है —  
उसके होते हुए तुम कैसे भटक सकते हो...?

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npidrish