Friday, 16 August 2024

कुत्ते का कहर

कहते हैं कुत्ता काटता है,  
माँ, मैंने इक कुत्ता पाला है,  
सड़क पे भौंकते कुत्तों को भी मैंने दिया निवाला है,  
जब मैं जाती हूँ आधी रात को, वो पीछे-पीछे आते हैं,  
मैं सहम जाती हूँ तो मुझे देख अपनी पूँछ हिलाते हैं,  
हाय, क्यों कहती ये जालिम दुनिया, कुत्ते काटते हैं।

वो सच में कितने प्यारे हैं,  
जग के सबसे दुलारे हैं।

डर तो उन कुत्तों से लगता है, जो इंसानी रूप धारण कर आए हैं,  
देख कर मुस्कुराते हैं,  
पास मुझे बुलाते हैं,  
गर मैं चली जाऊँ सुनकर बात, अपनी बातों में फँसाते हैं,  
फिर इक दिन मुझे जलील कर, अपनी दुनिया से भगाते हैं।

गर मैं न आऊँ उसकी बातों में तो,  
जालिम नोचने पे उतारू हो जाते हैं,  
नोच-नोच कर मेरी पंखों को कुत्ते की तरह चबाते हैं,  
और जो मैं चीखूँ तो, मेरे मुँह को पत्थर से दबाते हैं,  
और जो हाथ-पैर हिलाऊँ तो, मेरी जाँघों को चीर, मुझे आत्मपीड़ा से तड़पाते हैं।

माँ, ये कुत्ते जो इंसान रूप में, इनके प्यार दिखावे और क्रूरता दोनों ही बड़े डरावने हैं...

इनसे तो कुत्ते भी घबराते हैं...

माँ, मैं कैसे जाऊँ बाहर घर से... मेरे कुत्ते भी इन इंसानी कुत्तों से न मुझे बचा पाते हैं।

\- एन.पी. इद्रीश


यह कविता एक लड़की की भावनाओं को प्रकट करती है, जो समाज की उन बुराइयों से डरती है जो इंसान के रूप में छिपी हुई हैं। वहीं वह अपने पालतू कुत्ते के प्रति प्रेम और उसके साथ जुड़े सुरक्षा के भाव को व्यक्त करती है। 

कविता का सार:

यह कविता सामाजिक विडंबनाओं और स्त्री के प्रति होने वाली हिंसा की ओर इशारा करती है, जहां वह एक कुत्ते को पालती है और उससे उसे सच्चा प्रेम मिलता है। लेकिन जब वह समाज के 'इंसानी कुत्तों' के सामने आती है, तो उसे उनके दिखावे और पाखंड से डर लगता है। 

भावनाएं:

कविता में जिस तरह से समाज की कटु सच्चाई को सामने रखा गया है, वह स्त्री के प्रति होने वाले अत्याचार और सामाजिक संरचना पर सवाल उठाता है। 

कविता का भाव:

इस कविता के जरिए एक सशक्त संदेश दिया गया है कि वास्तविक खतरा उन इंसानों से है जो पाखंड का मुखौटा पहनकर स्त्री का शोषण करते हैं।

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