जाना तो सती ने भी था बरसो का तप सेह कर महादेव को पाया था, फिर क्यों जान कर भी वो अग्नि में समाहित हुई,
क्यू फिर एक जन्म और उसको करना पड़ा तप, प्रेम को फिर से पाने के लिए, ।
जान लेना प्रेम में शायद पर्याप्त नही,
प्रेम को सिर्फ क्या पा लेना ही पर्याप्त था ?
पा तो सीता ने भी लिया था राम को,
और हर मर्यादा का लाज भी रखा था,
फिर क्यों धरती में समाहित होना पड़ा उसे,
पा लेना प्रेम में शायद पर्याप्त नहीं,
प्रेम को सिर्फ क्या मान लेना ही पर्याप्त था ?
माना तो मीरा ने भी था श्याम को अपना सब कुछ,
फिर क्यों प्रेम की पीड़ा को सहकर भी उसे मूरत में समाना पड़ा,
लोक लाज सब त्याग जोगन बन जाना पड़ा,
मान लेना प्रेम में शायद पर्याप्त नहीं,
प्रेम में कुछ भी पूरा नहीं, कुछ भी पर्याप्त नही
कितना भी जान लो, मान लो, या पा लो, रह जाता है अधूरा कुछ,
क्युकी प्रेम खुद में ही पूरा नहीं,,,।
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