Friday, 12 June 2020

जंजीर

जंजीर

 एक लड़की को देखा कल ख़्वाब में मैंने,
 थी आंखों में उसके किसी की तलास,
 और मन था उसका नीरस उदास,
  वो लड़की शायद कुछ ढूंढ रही थी,
  पलके उसकी भीगी हुई थी,
  वो सपनो के पंख लगाकर उड़ना चाहती थी,
  वो सीखना और पढ़ना चाहती थी,
  मैंने देखा उसके पैरों में बेड़िया थी कसी हुई,
  और हाथों में जंजीरे बंधी हुई,
  उसके पास ही दूर थोड़ा एक कलम किताब मैंने देखा,
  जो किसी ने उसके हाथों से छीन था वहा फेंका,
  वो उस कलम की ताकत से कुछ भी बन सकती थी,
  डॉक्टर वकील या फिर पुलिस बन समाज से लड़ सकती थी,
  लेकिन बेड़ियों ने थे उसके हाथ कुछ यू जकड़े,
  के खून टपक रहा था आंखों से आँसुओ में उसके,
  मैं चाहता था उसके आँसुओ को पोंछ दूं,
  वो किताब उठा कर उसके हाथों तक ला कर दूं,
  उसके बेड़ियों को मैं तोड़ना चाहता था,
  और उसको कलम का हथियार दे कर लड़ना सीखना चाहता था,
  मैं जैसे ही आगे बढ़ा।
  मेरा ख़्वाब टूट गया,
  मेरे हाथों से कलम और किताब छूट गया,
  वो लड़की भी अब आंखों से ओझल हो गई,
  मैं सोचता रहा और सुबह हो गई,
  इतने में मेरी बेटी आ कर मुझसे लिपट गई
  और पापा मैं डॉक्टर बनुगी कहकर मुस्कुराने लगी,
  मैंने भी ठान लिया अब समाज की हर बेड़ियों को मैं तोडूंगा,
  चाहे हो जाए कुछ भी अपनी बेटी का हाथ नही छोडूंगा,
  उसको न मैं जंजीरों में बंधने कभी दूंगा,
  रीति रिवाज समाज की हर जंजीर को मैं तोडूंगा।।
 
  

Monday, 6 January 2020

तीसरे दर्जे के लोग


हमारा देश 3 वर्गों में आज बंट गया है -



1) भारत में 60% जनता वो है जिसे किसी से कोई लेना देना नही चाहे आग में जाए दुनियां उसे न तो किसी पोलिटिकल पार्टी में कोई दिलचप्सी है न रैलियों में न आंदोलन में न प्याज़ के दाम बढ़ने में वो सो रही है या यू कहो वो खोई हुई है । कहि वही घर बार चलाने में सुबह आफिस के लिए निकलने में शाम को घर आकर परिवार के साथ समय बिताने में , वो स्टूडेंट्स जो पढ़ाई में लगे हुए है उन्हें डर है इस साल भी सलेक्शन नही हुआ तो क्या होगा , लडकिया जिन्हें अपनी बढ़ती उम्र के साथ शादी की चिंता सता रही है वो बच्चे जिन्होंने relationship में breakup की वजह से दुनिया भूला दिया है अब सब सुना सुना है उनकी जिंदगी में कुछ बेचारे घर बार से परेशान क्या करे थोड़ी सी तनख्वाह और इतनी महंगाई कुछ बोलना भी चाहे तो बोल नही पाते , ये 60% लोग ऐसे जी रहे के इस समाज में होकर भी नही है आवाज होते हुए भी गूंगे है साधन होते हुए भी उसका इस्तेमाल कर नही रहे या करना नही चाहते । मूक हो चुके है जरूरी नही जागना न जागना चाहते है कान में आवाज आ रही है कहि से चीखों की रोने की दर्द तकलीफों जुल्मो की लेकिन इन्हें क्या ये आराम से है क्योंकि इनके बच्चे सुरक्षित है इनकी बेटियां सुरक्षित है थोड़े में ही सही गुजारा हो रहा है । सब ठीक ठाक चल रहा है ।


2) दूसरा वर्ग आता है 20% जो किसी 1 खास धर्म को मानते है चाहे वो कोई भी धर्म जाति हो और उसके प्रति कट्टर है , ऐसे लोग थोड़े सटके हुए होते है चाहे कुछ भी हो जाए धर्म को नही छोड़ेंगे , वो किसी भी धर्म से हो सकते है हिन्दू ,मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन, पारसी, बौद्ध, भीम, कोई भी, उन्हें नही मतलब किसी भी चीज से बस धर्म जहां आ गया मर मिटेंगे रक्षा के लिए सच्चे रक्षक धर्म के यही नारा है इनका, 20% आबादी का । कट्टर बहुत कट्टर धर्म के नाम पर इतने कट्टर के ये भूल जाते है हम इंसान है धर्म में बांटे गए है भगवान ने धर्म नही बनाया , ये हर चीज को हर बात को धार्मिक नजरिये से देखते है हर बात के ऊपर धर्म का चोला पहना देते है इन्हें समझ नही आता कुछ भी या समझते है लेकिन धार्मिक परत इतनी मोटी जमी हुई है के कुछ अंदर जाता ही नही , ऐसे लोग हानिकारक है सच कहूँ तो हाँ है हानिकारक जिन्होंने कट्टरता को चुना इंसानियत को नही धर्म तब तक अच्छा है जब तक वो सिर्फ धर्म है उसमे अगर कट्टरता आ गई तो फिर वो बात गई । वेदों पुराणों कुरान बाइबल और सभी धार्मिक किताबो में कहि भी पढ़ लो कट्टरता नही दिखती ,लेकिन समय बदल गया है किताबो को अगर पढ़ लिया जाता और समझा जाता तो ये कट्टरता न आती ।




3) सबसे ख़तरनाक हानिकारक और जहरीले ये 20% लोग होते है सच कहूँ ये अजगर और कोबरा से भी खतनाक होते है ये वो जानवर है जो अपने पालने वालो को भी न छोड़े ऐसे लोग जो पहले वर्ग 60% और दूसरे वर्ग 20% दोनों को गुमराह कर रहे है ये ऐसा वर्ग है जो ऐसा कीचड़ है जिसने 80% लोगो को तबाह कर दिया है, ऐसा दाग जो छूटने का नाम नही लेता इस वतन के आँचल से । इनको नही मतलब किसी से न धर्म से , इन्हें तो आता है इस्तेमाल करना अपनी कुर्सी के लिए भारत को बदनाम करना, इन्हें नही मतलब बेटियां जले इन्हें नही मतलब छात्रों का खून बहे इनको मतलब है के देश जले , जलेगा देश तभी तो रोटियां सेकी जाएगी बनेगा भोजन खून से तभी तो कुर्सियां सजाई जाएगी । इन्हें सत्ता के अलावा कुछ नही दिखता इन्हें कुर्सी के अलावा कुछ नही दिखता ये कुछ भी कर सकते है कुछ भी मतलब कुछ भी । वैसे तो आप समझ ही गए होंगे लेकिन फिर भी बता दूं आपको जान कर खुशी ह्योगी ये हमारे देश के नेतागण है ये किसी पार्टी विशेष से नही है ये कहीं से भी है पॉलिटिक्स मतलब कीचड़ सब अपवित्र कर देंगे ये । चाहे ये कोई भी पार्टी हो चाहे वो कोई भी नेता हो,, किसी पार्टी की समर्थक नही हूं के किसी विशेष को अच्छा कहूंगी, यहां मतलब पॉलिटिक्स से है जिसमे सभी आते है । कीचड़ मतलब कीचड़ जिसने देश को गंदा करके रखा हुआ है हर जगह गन्दगी फैलाई हुई है हर सुंदर सुंदर मेरे देश के कोने में कीचड़ -कीचड़ भर दिया है, यहां तक की अब इंसान का दिमाग भी नही बचा वहां भी कीचड़ भरा हुआ है । अब तो बस बदबू इतनी बढ़ गई है सफाई मांग रही है , लेकिन 80% वाले खुश है उन्हें क्या' मजा आ रहा है नई खुशबू है आनंद आ रहा है ।
मैं दूसरा वर्ग 20% वालो की बात नही कर रही, भांड में जाए 20% चल जाएगा ,लेकिन ये जो ऊपर 60% बैठा है न मौन इनसे बहुत खतरा है ये नही बोलेगा तो बोलेगा एक दिन कीचड़ इनके दिमाग में भी । मैं दूसरे दर्जे पर जो 20% धार्मिक कट्टर लोग बैठे है उन्हें कुछ नही बोल रही वो न बदलेंगे वो कल भी ऐसे थे आज भी ऐसे है कल भी ऐसे होंगे , रहने दो उन्हें ऐसा ही मरेंगे कटेंगे लेकिन साथ में तो रहंगे ,,,

मैं बात कर रही हूँ पहले दर्जे की ,,वो 60% भी जाग गए न तो ये , ये जो तीसरा दर्जा है न कीचड़ वाला सफाई कर डालेंगे ,, सब पवित्र कर के रख देंगे लेकिन जागना जरूरी है ,...भागना नही ।


- N.P. IDRISH

आज फर्क इतना सा है

आज फर्क इतना सा है

आज फर्क इतना सा है के हम कहलाते है आज़ाद,
बरसों रहे गुलाम दबाए हुए आवाज़,
फिर भी कहीं आज़ादी छुपाए हुए थे ज़नाब,

1.फांसी भी जो चढ़े तो दबने न दी आवाज़,
हाँ जेल भी गए और खाई लाठियां भी हज़ार,
गूंजी थी जो आवाज़ वो बुलंदी पर ले गए,
कर सत्याग्रह दिखाई थी अपनी खुली आवाज़, 
बरसों रहे गुलाम दबाए हुए आवाज़
फिर भी कहीं आज़ादी छुपाए हुए थे ज़नाब,

2. मुगलो ने अंग्रेज़ो ने झुकाया कई ही बार,
सर भी कटा दिए थे हमने तो खुशी से यार,
गाते हुए गुनगुनाते हुए हो गए थे वतन पे कुर्बान,
वो इसलिए नही था के तुम लूट लो खुद अपने ही वतन की आन,
बरसों रहे गुलाम दबाए हुए आवाज़
फिर भी कहीं आज़ादी छुपाए हुए थे ज़नाब,
आज फर्क इतना सा है के हम कहलाते है आज़ाद  ,

3. हर धर्म -जाति का हर इंसान का खून मिला हुआ है इस जमीन पर,
हैं तीन रंग खूब खिलता मेरे जमीन पर,
क्यों खून का रंग भी तुम अलग कर रहे हो,
हैं प्रकृति ने भी न बांटा हमे इस जमीन पर,
तब और अब में फर्क बस इतना सा है ज़नाब,
तब थे गुलाम फिर भी कहलाते थे आज़ाद
अब होकर आज़ाद हो गए खुद अपने ही गुलाम
बरसों रहे गुलाम दबाए हुए आवाज़
फिर भी कहीं आज़ादी छुपाए हुए थे ज़नाब,
आज फर्क इतना सा है के हैं हम आज़ाद ,।।



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