जंजीर
एक लड़की को देखा कल ख़्वाब में मैंने,
थी आंखों में उसके किसी की तलास,
और मन था उसका नीरस उदास,
वो लड़की शायद कुछ ढूंढ रही थी,
पलके उसकी भीगी हुई थी,
वो सपनो के पंख लगाकर उड़ना चाहती थी,
वो सीखना और पढ़ना चाहती थी,
मैंने देखा उसके पैरों में बेड़िया थी कसी हुई,
और हाथों में जंजीरे बंधी हुई,
उसके पास ही दूर थोड़ा एक कलम किताब मैंने देखा,
जो किसी ने उसके हाथों से छीन था वहा फेंका,
वो उस कलम की ताकत से कुछ भी बन सकती थी,
डॉक्टर वकील या फिर पुलिस बन समाज से लड़ सकती थी,
लेकिन बेड़ियों ने थे उसके हाथ कुछ यू जकड़े,
के खून टपक रहा था आंखों से आँसुओ में उसके,
मैं चाहता था उसके आँसुओ को पोंछ दूं,
वो किताब उठा कर उसके हाथों तक ला कर दूं,
उसके बेड़ियों को मैं तोड़ना चाहता था,
और उसको कलम का हथियार दे कर लड़ना सीखना चाहता था,
मैं जैसे ही आगे बढ़ा।
मेरा ख़्वाब टूट गया,
मेरे हाथों से कलम और किताब छूट गया,
वो लड़की भी अब आंखों से ओझल हो गई,
मैं सोचता रहा और सुबह हो गई,
इतने में मेरी बेटी आ कर मुझसे लिपट गई
और पापा मैं डॉक्टर बनुगी कहकर मुस्कुराने लगी,
मैंने भी ठान लिया अब समाज की हर बेड़ियों को मैं तोडूंगा,
चाहे हो जाए कुछ भी अपनी बेटी का हाथ नही छोडूंगा,
उसको न मैं जंजीरों में बंधने कभी दूंगा,
रीति रिवाज समाज की हर जंजीर को मैं तोडूंगा।।
एक लड़की को देखा कल ख़्वाब में मैंने,
थी आंखों में उसके किसी की तलास,
और मन था उसका नीरस उदास,
वो लड़की शायद कुछ ढूंढ रही थी,
पलके उसकी भीगी हुई थी,
वो सपनो के पंख लगाकर उड़ना चाहती थी,
वो सीखना और पढ़ना चाहती थी,
मैंने देखा उसके पैरों में बेड़िया थी कसी हुई,
और हाथों में जंजीरे बंधी हुई,
उसके पास ही दूर थोड़ा एक कलम किताब मैंने देखा,
जो किसी ने उसके हाथों से छीन था वहा फेंका,
वो उस कलम की ताकत से कुछ भी बन सकती थी,
डॉक्टर वकील या फिर पुलिस बन समाज से लड़ सकती थी,
लेकिन बेड़ियों ने थे उसके हाथ कुछ यू जकड़े,
के खून टपक रहा था आंखों से आँसुओ में उसके,
मैं चाहता था उसके आँसुओ को पोंछ दूं,
वो किताब उठा कर उसके हाथों तक ला कर दूं,
उसके बेड़ियों को मैं तोड़ना चाहता था,
और उसको कलम का हथियार दे कर लड़ना सीखना चाहता था,
मैं जैसे ही आगे बढ़ा।
मेरा ख़्वाब टूट गया,
मेरे हाथों से कलम और किताब छूट गया,
वो लड़की भी अब आंखों से ओझल हो गई,
मैं सोचता रहा और सुबह हो गई,
इतने में मेरी बेटी आ कर मुझसे लिपट गई
और पापा मैं डॉक्टर बनुगी कहकर मुस्कुराने लगी,
मैंने भी ठान लिया अब समाज की हर बेड़ियों को मैं तोडूंगा,
चाहे हो जाए कुछ भी अपनी बेटी का हाथ नही छोडूंगा,
उसको न मैं जंजीरों में बंधने कभी दूंगा,
रीति रिवाज समाज की हर जंजीर को मैं तोडूंगा।।