Thursday, 22 August 2019
सफर
Friday, 19 July 2019
हाँ मैं नास्तिक हूँ ।
हाँ मैं नास्तिक हूँ मुझे गर्व है मैं भगवान के नाम पर किसी से लड़ती नही,
न मंदिर मस्जिद के चक्करो में पड़ती हूँ।
मैं किसी को ये नही कहती के मेरा धर्म महान न नफरत के बीज बोती हूँ ।
मैं रंगों के आधार पर इंसानों को नही बांटती, न नाम के आधार पर भेद करती हूँ ,
हाँ मैं नास्तिक हूँ और मुझे गर्व है अपने नास्तिक होने पर ,,
मैं अनुभूतियों में विश्वास करती हूँ अंधविश्वासों में पड़ती नही।
अपने अंदर ही मैंने भगवान को देखा है इसलिए उसे पथरों में ढूंढती नही ।
न अज़ान से मुझको मतलब है न मंदिर के जयकारों से,
मैं गिरजाघर भी जाती हूँ और जाती हूँ गुरुद्वारे भी ,
मैं पढ़ती हूँ कुरान गीता और सुखमणि साहिब का पाठ भी,,
है बाईबल मुझको उतना ही प्रिय जितना के रामायण का पाठ है ।
ये सब ज्ञान के स्रोत है नही इसमें भेद कोई ,सबसे कुछ न कुछ सीखा है पर माना है जो हो सही ।।
अच्छा लगता है होली भी और मुझको दीवाली भी ,,
मैं ईद पे सेवइयां खाती हूँ क्रिसमस पे चर्च भी जाती हूँ।
जब मन हो मंदिर भी चली जाती हूँ गुरुद्वारे सिर भी झुकाती हूँ, दरगाह की सुंगन्ध मुझे भाए और चर्च में चुप चाप बैठ जाती हूँ।
मैं जीवन के हर एक पहलू को जीती हूँ खुश होकर मेरे लिए तो सब एक जैसे है किसी में कोई भेद नही ।
हाँ मैं नास्तिक हूँ और मुझे गर्व है मेरे नास्तिक होने पर।
मैं खुश हूँ मैं उन जैसी नही जो धर्म के नाम पर लड़ते है ।
कपड़े के रंगों और नामो से इंसान की पहचान करते है ।।
किसी गरीब की मदद करने से पहले उसका भगवान पूछते है।
आस्था के नाम पर कई कुर्बानियां करते हैं।।
जानवर ज्यादा प्यारे है इंसान की कोई कीमत नही,
खून इंसान का पानी हर धर्म की यही कहानी है।।
अंधविश्वास का टीका अपने माथे पोते फिरते है ।
चाहे दे दो इनको अमृत भी ,
ये खून के प्यासे फिरते है ।।
नाम खुदा का रखते है, बदनाम खुदा को करते है ,,झूठी आस्था का दावा कर , भगवान को भी कटघरे में खड़ा होने को मजबूर करते है।
न तर्क वितर्क का ज्ञान है इनको,
ये विज्ञान से भी लड़ते है,
और नफरत की खेती करते करते सच को अनदेखा करते है।
हाँ मैं नही हूँ आस्तिक, मैं नास्तिकता में आस्था रखती हूँ।
सबकी नजरो में नास्तिक और खुद में आस्था रखती हूँ ।।
Saturday, 22 June 2019
हर सफर कुछ नया सिखाती है।
युही नही मौसम, अपना कई रूप बदल दिखाती है।
जाते हुए टॉय ट्रैन का सफर
एक नई अनुभूति पहाड़ो से ट्रैन ऐसे निकलती है जैसे कोई खेल खिलौने की दुनिया हो
पूरा सफर लगभग 6 घण्टे युही बाहर के नजारे लेते हुए गुज़रा प्राकृतिक संगीत का ऐसा रूप कभी नही सुना, प्रकृति की ऐसी सुंदरता जो मन में बस गई, खिड़की वाली सीट और दरवाजे के पास बैठ कर पूरा प्रकृतिक सुंदरता का आंनद लेना मन को एक सुकून दे गया,जिसकी तलास हमेशा रहती है,
बीच में कई स्टेशन पर ट्रैन रुकी और मेरी नज़रे भी जहाँ मुलाकात हुई ,
हिमांशु एक छोटा सा बच्चा आत्मीयता भरी मुश्कान लिए , उसकी मुश्कान ने तो बस मेरा मन मोह लिया उसके आगे प्रकृति की सारी सुंदरता फीकी पड़ रही थी, वही एक डॉगी भी मिला बहुत ही प्यार भरा अनुभव रहा,,उसके साथ सच ही कहा गया है प्यार लफ़्ज़ों का मोहताज़ नही ,,पांच मिंट ही सही लेकिन इस प्रेम में ऐसी अनुभूति थी जो कहीं नही इंसानों में तो शायद ही होती हो,
मैं अलग सी थी कहीं मैं खोई थी कहीँ,,
अब उन्हें कैसे बताती ,,
जब प्रकृति बोलती है तो अंदर खामोशी छा जाती है,, बस अनुभव किया जाता है कुछ बोलकर कुछ कह कर खो जाता है सब ,,
इसलिए गुम थी , इसलिए चुप थी,,
जब प्रकृति बोलती है उसका संगीत डोलता है तब सिर्फ खामोशी ही खामोशी छा जाती है ये सिर्फ एक अंतर्मुखी ही समझ सकता है जो प्रकृति में खोकर बस जीना चाहता हैं,,बस महसूस करता है बिना कुछ बोले बिना कुछ समझे बिना कुछ जाने बस महसूस सिर्फ महसूस ,, प्रकृति भी तो मेरी तरह ही है खोई हुई लेकिन बहुत कुछ समेटे हुए खुद में , बस एक तलास में के कोई जाने कोई पहचाने कोई उस खोने में खुद को खोकर पा ले ,,
लेकिन नजरिया थोड़ा अलग हैं , जो मैंने देखा मैंने महसूस किया शायद किसी को दिखा न हो ,,और जो सबने एन्जॉय किया उसमे मेरी कोई दिलचस्पी न हो,, थोड़ी अलग हूँ इसलिए सबको शिकायत रहती है मुझसे अब शिकायतों को कैसे दूर करू ये सब सोचना छोड़ दिया है क्योंकि शिकायते तो उम्र भर की साथी है ,,
इसलिए सिर्फ प्रकृति को अपना साथी कहती हूँ क्योंकि वो समझ पाती है के मुझे क्या चाहिए किसकी तलास है मुझे ,,और कहा जाकर रुकेगी,,
बहरहाल सब अच्छा था इस सफर ने बहुत कुछ नया सिखाया और हर सफर की तरह बहुत कुछ बदला मेरे अंदर , और यही मकसद भी था बदलाव जैसे प्रकृति बदलती रहती है अपना रूप ,,।।।
उसके बाद शिमला की हसी वादियां साथ में स्नो फाल , पहाड़ियों की चढ़ाई अलग अनुभूति थी ये प्रकृति का अलग दर्शन हुआ प्रकृति प्रेमियों को और क्या चाहिए जो चाहिए मिल गया था ,,
बस एक कमी रह गयी थी जिस वजह से गयी थी वो रह गया वो खास अनुभूति जिसकी तलास मुझे वहा ले गयी थी ,,
सालो पहले जब शिमला गयी थी तो वहा चर्च में लगभग 2 घण्टे बैठी रही , और किस्मत इतनी अछि थी के किसी ने डिस्टर्ब भी नही किया था तब ,,ज्यादा भीड़ भी नही थी ,, तब बहुत छोटी थी मैं 10थ क्लास में थी ,, लेकिन वो जो अनुभूति मैंने महसूस की थी वो कुछ बहुत खास था ,,शब्दो से परे,, यही वजह रही थी के मैं चर्च में चली जाया करती थी उसके बाद ,,जब भी कही चर्च नजर आता था,,
उस करंट को दुबारा महसूस करना था , उस आत्मियता भरी अनुभूति को पाना था, लेकिन शायद अल्लाह को ये मंजूर न था के वो अनुभूति मुझे दुबारा मिलती ,,
जब मैं इस बार चर्च के लिए जाने लगी तो 1st टाइम में कुछ रुकावट आयी और जा न पाई,,
लेकिन जब गयी तो तब भी गेट बन्द ही पाया ,शायद खुदा को यही मंजूर था,
थोड़ी मायूसी हुई के इतनी दूर जिस तलास की तलास में आयी वो तलास युही रह गयी,,बस गेट के पास ही खड़े होकर थोड़ा वक़्त बिताया और सॉरी कह कर दुबारा आने का वादा कर आई,,
आते हुए बहुत कुछ सीखा बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ देखा ,,उस छोटे बच्चे की मुश्कान और उस भालूदार डॉगी की आत्मियता भरी अनुभूति प्रकृति की सुंदरता और लोगो की मुझसे शिकायतों के साथ,,और बहुत सारी ख़ामोशियों की अनुभूतियों के साथ शिमला का सफर पूर्ण हुआ,,।।
Thursday, 23 May 2019
महात्मा
लोग महात्मा को गालियां देने लगे है और एक हत्यारे को महान बुलाने लगे है ,
मुझे नही पता क्या सच है क्या झुठ लेकिन इतना जरूर पता है कोई ह्त्या करके महान नही हो सकता,,
और कोई उन्हें कितना भी गालिया दे उनकी महानता कम नही हो सकती,,
चंद लाइन उनके लिए ,
वो महान था महान रहेगा,,
तुम इतिहास को कैसे बदल पाओगे,
एक हत्यारा कभी महान नही होगा,,
क्या ? आने वाली पीढ़ी को यही सिखाओगे,,
इतनी नफरत लाते कहाँ से हो,
क्या अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है इस बात को झुटला पाओगें,,
इतनी ही नफरत करते हो अगर उससे तो क्या नोट से उसे हटा पाओगे,,
चलो छोड़ो ,
बस इतना कर दो जिस नोट पर वो बैठे है मुस्कुराते हुए, उसे इस्तेमाल करना क्या छोड़ पाओगे,,
क्या होती है महात्मा की परिभाषा क्या तुम इसे भी बदल पाओगें,,
सत्य अहिंसा का मार्ग भी क्या इसे भी भूल जाओगे ,
चलो न करो जयजयकार उसकी,
मान लिया वो महान नही,
क्या फिर भी उसका किया कभी भूला पाओगे,
इतनी नफरत लाते कहाँ से हो ,
सच कहूँ तुम आज़ाद होकर भी खुद अपनी सोच से न आज़ाद हो पाओगे,,
मैंने उससे सीखा है बहुत कुछ ,
कैसे भूलू मैं उसका बलिदान,,
चलो मान लिया तुम्हारा कहा भी उसने नही किया कोई बलिदान ,,
फिर भी कैसे भूलू उसने छोड़ दिया देश के लिए ही अपने जीवन का हर सुख आराम,,
मेरे लिए कल भी वो महात्मा था आज भी वही है और कल भी वही रहेगा,
कोई हत्यारा कभी मेरी नजरो में महात्मा नही कहलायेगा,
पर दु:खे उपकार करे तोये मन अभिमान न आणे रे ॥
वाच काछ मन निश्चल राखे धन धन जननी तेनी रे ॥
जिह्वा थकी असत्य न बोले, परधन नव झाले हाथ रे ॥
रामनाम शुं ताली रे लागी, सकल तीरथ तेना तनमां रे ॥
भणे नरसैयॊ तेनु दरसन करतां, कुल एकोतेर तार्या रे ॥
#npidrish
#mahatmagandhi
Sunday, 27 January 2019
जो अकेले चलते है
जो भीड़ में चलते है वो भीड़ में ही कहीं खो जाते है,
जो अकेले चलते है इतिहास वो ही बनाते है,
इतिहास गवाह है अकेले चलने वालो के पीछे ही भीड़ अपना रास्ता बनाते है,,
जो राह में अकेला समझ रुक जाए,
वो भीड़ का हिस्सा जल्द ही बन जाते है,
अकेले चलते है जो रुकते नही,,
आवाज देते है मगर झुकते नही,
अंधेरो में हाथ किसी का मांगते नही,
रोशनी में साथ किसी का मांगते नही,
इतिहास गवाह है , किसी की मदद के लिए सबसे पहले हाथ वही बढ़ाते है,
वो किसी के पीछे खड़े नही होते , वो सामने आकर हाथ बढ़ाते है,
भीड़ उसके पीछे खड़ी होती है,
और वो आगे खड़े मुस्कुराते है,
उन्हें जरूरत नही जयजयकार की,
उनका काम ही उनकी पहचान बताते है,
उन्हें लालच नही किसी नाम की,
वो हमेशा अपनी पहचान छुपाते है,
वो जीते है सिर्फ सुकून के लिए ,,
किसी की मुस्कान में ही वो अपनी खुशिया जी जाते है,,
लाख विरोधों में भी अटल खड़े उन्हें पाते है,
जो रुकते नही पत्थरो की चोट से,
वो ही तो संगेमरमर के महल बनाते है
वो इंतिज़ार नही करते किसी का,
वो खुद ही हल उठाते है,,
उन्हें जरूरत नही बारिसों की,
वो खुद बौझार बन बरस जाते है,,
उनके पसीने से ही फसल लहलहाते है,
उन्हें जरूरत नही तारीफों की,
वो बुराइयों में भी जगमगाते है,
वो हवा की तरह होते है,,
शांत बन शीतलता फैलाते है,
और क्रूर हो तो तूफान बन जाते है,,
जो अकेले चलते है,
इतिहास वो ही बनाते है,,।