Saturday, 22 June 2019

हर सफर कुछ नया सिखाती है।

JAN /2019

हर सफर कुछ नया सिखाती है,
युही नही मौसम, अपना कई रूप बदल दिखाती है।


शिमला की यादगार और अनुभूतियों से भरी यात्रा,,
जाते हुए टॉय ट्रैन का सफर
एक नई अनुभूति पहाड़ो से ट्रैन ऐसे निकलती है जैसे कोई खेल खिलौने की दुनिया हो
पूरा सफर लगभग 6 घण्टे युही बाहर के नजारे लेते हुए गुज़रा प्राकृतिक संगीत का ऐसा रूप कभी नही सुना, प्रकृति की ऐसी सुंदरता जो मन में बस गई, खिड़की वाली सीट और दरवाजे के पास बैठ कर पूरा प्रकृतिक सुंदरता का आंनद लेना मन को एक सुकून दे गया,जिसकी तलास हमेशा रहती है,
बीच में कई स्टेशन पर ट्रैन रुकी और मेरी नज़रे भी जहाँ मुलाकात हुई ,
हिमांशु एक छोटा सा बच्चा आत्मीयता भरी मुश्कान लिए , उसकी मुश्कान ने तो बस मेरा मन मोह लिया उसके आगे प्रकृति की सारी सुंदरता फीकी पड़ रही थी, वही एक डॉगी भी मिला बहुत ही प्यार भरा अनुभव रहा,,उसके साथ सच ही कहा गया है प्यार लफ़्ज़ों का मोहताज़ नही ,,पांच मिंट ही सही लेकिन इस प्रेम में ऐसी अनुभूति थी जो कहीं नही इंसानों में तो शायद ही होती हो,



सभी को मुझसे शिकायते रही मैं गुमसुम थी कही
मैं अलग सी थी कहीं मैं खोई थी कहीँ,,
अब उन्हें कैसे बताती ,,
जब प्रकृति बोलती है तो अंदर खामोशी छा जाती है,, बस अनुभव किया जाता है कुछ बोलकर कुछ कह कर खो जाता है सब ,,
इसलिए गुम थी , इसलिए चुप थी,,
जब प्रकृति बोलती है उसका संगीत डोलता है तब सिर्फ खामोशी ही खामोशी छा जाती है ये सिर्फ एक अंतर्मुखी ही समझ सकता है जो प्रकृति में खोकर बस जीना चाहता हैं,,बस महसूस करता है बिना कुछ बोले बिना कुछ समझे बिना कुछ जाने बस महसूस सिर्फ महसूस ,, प्रकृति भी तो मेरी तरह ही है खोई हुई लेकिन बहुत कुछ समेटे हुए खुद में , बस एक तलास में के कोई जाने कोई पहचाने कोई उस खोने में खुद को खोकर पा ले ,,
हलाकि सबने बहुत एन्जॉय किया शायद मुझसे कहीं ज्यादा
लेकिन नजरिया थोड़ा अलग हैं , जो मैंने देखा मैंने महसूस किया शायद किसी को दिखा न हो ,,और जो सबने एन्जॉय किया उसमे मेरी कोई दिलचस्पी न हो,, थोड़ी अलग हूँ इसलिए सबको शिकायत रहती है मुझसे अब शिकायतों को कैसे दूर करू ये सब सोचना छोड़ दिया है  क्योंकि शिकायते तो उम्र भर की साथी है ,,
इसलिए सिर्फ प्रकृति को अपना साथी कहती हूँ क्योंकि वो समझ पाती है के मुझे क्या चाहिए किसकी तलास है मुझे ,,और कहा जाकर रुकेगी,,
बहरहाल सब अच्छा था इस सफर ने बहुत कुछ नया सिखाया और हर सफर की तरह बहुत कुछ बदला मेरे अंदर , और यही मकसद भी था बदलाव जैसे प्रकृति बदलती रहती है अपना रूप ,,।।।
उसके बाद शिमला की हसी वादियां साथ में स्नो फाल , पहाड़ियों की चढ़ाई अलग अनुभूति थी ये प्रकृति का अलग दर्शन हुआ प्रकृति प्रेमियों को और क्या चाहिए जो चाहिए मिल गया था ,,
बस एक कमी रह गयी थी जिस वजह से गयी थी वो रह गया वो खास अनुभूति जिसकी तलास मुझे वहा ले गयी थी ,,
सालो पहले जब शिमला गयी थी तो वहा चर्च में लगभग 2 घण्टे बैठी रही , और किस्मत इतनी अछि थी के किसी ने डिस्टर्ब भी नही किया था तब ,,ज्यादा भीड़ भी नही थी ,, तब बहुत छोटी थी मैं 10थ क्लास में थी ,, लेकिन वो जो अनुभूति मैंने महसूस की थी वो कुछ बहुत खास था ,,शब्दो से परे,, यही वजह रही थी के मैं चर्च में चली जाया करती थी उसके बाद ,,जब भी कही चर्च नजर आता था,,
उस करंट को दुबारा महसूस करना था , उस आत्मियता भरी अनुभूति को पाना था, लेकिन शायद अल्लाह को ये मंजूर न था के वो अनुभूति मुझे दुबारा मिलती ,,




जब मैं इस बार चर्च के लिए जाने लगी तो 1st टाइम में कुछ रुकावट आयी और जा न पाई,,
लेकिन जब गयी तो तब भी गेट बन्द ही पाया ,शायद खुदा को यही मंजूर था,
  थोड़ी मायूसी हुई के इतनी दूर जिस तलास की तलास में आयी वो तलास युही रह गयी,,बस गेट के पास ही खड़े होकर थोड़ा वक़्त बिताया और सॉरी कह कर दुबारा आने का वादा कर आई,,
 
आते हुए बहुत कुछ सीखा बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ देखा ,,उस छोटे बच्चे की मुश्कान और उस भालूदार डॉगी की आत्मियता भरी अनुभूति प्रकृति की सुंदरता और लोगो की मुझसे शिकायतों के साथ,,और बहुत सारी ख़ामोशियों की अनुभूतियों के साथ शिमला का सफर पूर्ण हुआ,,।।





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