छाव न पाया कभी
ममतामयी छाव न पाया कभी,,
इसलिए न जीना आया अभी,,।।
कैसी होती है वो मूरत किताबो में ही पढ़ी वो सूरत
असल में किसी ने दिखाया ही नही
इसलिए न जीना आया अभी,,
एक सूरत जरूर हा देखा था,,सही
किताबो में भी पढ़ा था,, कहीं
मंदिर में मूरत भी थी वही,,
हाँ देखा था धूप में कही छाव जैसी,,
वो ममतामयी सूरत थी कहीँ,,,
बारिश में हल्की पड़ाव जैसी
बस देखा पढ़ा,, न उसको जाना,,
इसलिए न अब तक खुद को पहचाना,,
वो प्यार वो दुलार न पाया कभी
इसलिए न प्यार करना आया अभी,,
थी धूप बड़ी इस दुनिया में,, जलते थे पाव मेरे भी
वो आँचल न सर पे आया कभी,,
हाँ धूप ने भी जलाया तभी,,
एक कसक इस दिल में बसी सी रही,,
बस आह बनके निकल न सकी,,
दिल दर्द से भरा सा रहा
कोई दर्द तक जा न सके,,
हाँ बन्द करके दिल को रखा तभी,,
खुद को अंदर इतना रुलाया
बाहर कुछ भी निकल न पाया,,
हाँ तभी आँखों से आँसू तक न आया कभी,,
ममतामयी छाव न पाया कभी,,।।
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