Friday, 9 November 2018

बोलती लकीरें

सुबह के 9 :20 बजे होंगे ,मैं और ललित चंडीगढ़ बस स्टॉप पे उतरे 9 बजे की क्लास थी पहले ही 20 मिनट लेट जल्दी जल्दी में मस्ती करते हुए , 
नेहा- आपकी वजह से ही लेट  हुआ है मैंम को कहूंगी मैं ,
इसने गलत बस ले लिया था मैंम जिस वजह से हम लेट हो गए ,
ललित- हा हा बोल देना मैं भी कह दूंगा इसने लेट करवाया,, फिर हम हिसाब किताब करने लगे किराया किसने किसका दिया और किसको कितना वापिस करना है ,।
अभी PU की बस आने में लेट थी, तभी मेरी नजर वहाँ बैठे एक बूढ़े व्यक्ति पर पड़ी , 
रंग बिरंगे पेन हाथ में लिए हुए थे , गठरी थी पेन की कुछ बड़े कुछ छोटे लाल पिले हरे नीले,
पहले मैंने पेन ही देखा ,, देखा तो पता लग गया 2र वाला पेन था , लेकिन जब सुना तो चौक गयी वो 2र के पेन को 10र की बता रहा था ,

नेहा- अंकल कितने का पेन 
अंकल - 10र का एक मैडम

तभी ललित बोल पड़ा "जागो ग्राहक जागो "
मैं 5 मिनट उस अंकल को देखती रही सफेद रंग की धोती और सफेद कुर्ता पैर में काले रंग की चप्पल थी एक गमछा रंगीन सा  हल्के गन्दे से रंग में पगड़ी पहनी हुई थी , हाथ सूखे हुए से और पैर  भी फ़टे फ़टे से थे ,।
देख के समझा जा सकता था उनकी अवस्था को ।

मैं उन्हें देख के विचारो में ही थी तभी आवाज आयी मैडम जी ये देखो बहुत सारे रंग है और ये कलम बहुत अच्छा चलता है 
हड़बड़ाहट में पेन को खोलते हुए वो लिखने के लिए कुछ ढूंढने लगे कुछ ढूंढते ढूंढते अपने कुर्ते तक पहुंच गए मैं देख के चौक गयी,
पूरा कुर्ता पेन की लकीरों से भरा हुआ था 
तभी अंकल ने फटाफट पेन से कुर्ते पर लकीरे बना डाली और कहने लगे ये देखो मैडम अच्छा चलता है , ।।
मैं वहा खड़ी निःशब्द थी उसकी व्याकुलता बेचैनी को खुद में महसूस कर रही थी ,ऐसा लग रहा था वो कुर्ते पर अपने जिंदगी की किताब लिख रहा था लकीरे उसके जीवन की सारी कहानी बयान कर रही थी , एक एक लकीर पढ़ रही थी मैं और हर लकीर एक नई कहानी बोल रही थी ।
तभी मैंने जेब में हाथ डाला और पर्स निकाला ,
20र का नोट निकालते हुए,
अंकल 2 कलम दे दीजिये
1 नीला और 1 ये गुलाबी ,,,

ये लो मैडम मुस्कुराते हुए , जैसे आज की ये पहली बोहनी थी उनकी चमक देख के पता लग गया था ।
मैं पीछे मुड़ी तभी 1 फैमिली वहा से गुज़री
पेन वाले अंकल फिर चिल्लाये  कलम ले लो कलम ले लो ,
वो फैमिली आगे चली गयी उसकी अगुआई 1 आंटी कर रही थी जिसमे उनके 2 बच्चे और 1 और आंटी थी, 
मैंने मन में सोचा काश वो भी ले ले पेन
तभी वो आंटी वापिस मुड़ गयी भइया कितने का पेन,
अंकल -10र
आंटी - अरे भइया बड़ा महँगा बोल रहे हो,
मुझसे रहा न गया मैं चली गयी वहा तभी पास से 1 अंकल भी आगये ,
नेहा- आंटी अगर कोई भिखारी भीख मांग रहा होता भगवान के नाम पर तो आप उन्हें जरूर 20र दे देते, बिना किसी पूछताछ के ,
वही ये अंकल मेहनत करके पेन बेच रहे है हां 2र का 10र में बेच रहे है मानती हूं लेकिन ये तो देखो कितना  बिज़नेस माइंड  चलाया है इन्होंने कितना सोचा होगा तभी यहाँ तक आये होंगे शुक्र है यहा तक आये हाथ में पेन है भीख मांगने के लिए कटोरा नही , हमे इन्हें मोटीवेट करना चाहिए इन्हें बढ़ावा देना चाहिए ताकि ये काम करने के लिए आगे आये खुशी खुशी अपने परिवार के लिए काम करे और अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट के साथ जिए, तभी साथ खड़े अंकल जी ने भी एक पेन ले लिया अंकल से,,  
और आंटी ने अपनी बेटी को कहा बताओ कौन से रंग की पेन लेना है , बोलते हुए भैया 2 दे दो बोल दिया ,

अंकल खुश थे बहुत 
तभी ललित ने आवाज लगाई 
बस आ गया हमारा , हम बस पे चढ़ गए 
जाते जाते बस एक ही दुआ कर रही थी मैं ,, या अल्लाह उस आंटी और उस अंकल की तरह और भी बहुत सारे लोग आये और उन पेन वाले अंकल के सारे पैन आज बिक जाए ,
औऱ जब वो आज घर जाए तो नई उत्साह और नए  शुरुआत के साथ दीवाली की मिठाईया लेके जाए अपने बच्चो के लिए ,,।।


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