Tuesday, 2 September 2025

3 बजे की घंटी

3 बजे की घंटी

दोस्तों, आज मैं आपको एक ऐसी सच्ची घटना सुनाने जा रही हूँ जिसने मुझे यक़ीन दिला दिया कि *अल्लाह हर जगह है... और जब चाहे, अपने होने का सबूत दे देता है।

रात के ठीक 3 बजे –
अचानक मेरे घर की घंटी इतनी ज़ोर से बजी कि मेरी नींद टूट गई। लगातार वही तेज़ आवाज़… और मेरे दोनों डॉग्स भी भौंकने लगे।
आधी नींद में, घबराई हुई मैं दरवाज़े तक पहुँची। बाहर तेज़ बारिश हो रही थी। आस-पास नज़र दौड़ाई… लेकिन वहाँ कोई नहीं था।

मैं अंदर लौटी तो मेरी नज़र पड़ी अपने *बेड साइड वाले बेल बोर्ड* पर।
वह पूरी तरह लाल हो चुका था, उसमें से चिंगारियाँ निकल रही थीं। और जिस दीवार पर वह लगा था, उस पर सजाया हुआ वॉलपेपर भी आग पकड़ चुका था।

उस पल मैं सच में दहशत में आ गई।
रात का सन्नाटा, बारिश की आवाज़, और कमरे में फैलता धुआँ…
क्या करूँ? किसे बुलाऊँ? अकेली थी मैं।

काँपते हाथों से मैंने फ़ोन उठाया और पड़ोस वाली आंटी को घबराकर कहा –
आंटी, आंटी"आंटी, जल्दी आइए… बेल बोर्ड में आग लग गई है।"

इसी बीच, जलता हुआ बेल बोर्ड टूटकर नीचे गिरा। शुक्र था कि वह मेरे बेड पर नहीं गिरा। वरना मेरा पूरा सामान… सब कुछ जलकर राख हो जाता।
लेकिन अजीब बात ये थी कि वॉलपेपर की आग अचानक अपने आप बुझ गई।
बेल बोर्ड अब भी जल रहा था, धुएँ से पूरा कमरा भर चुका था… जैसे किसी की नज़र उसी रूप में जल रही हो।

तभी आंटी पहुँच गईं। उन्होंने हालात देखे और हकबका कर बोलीं –
"तू वहीं सो रही थी? अगर तू नहीं उठती तो ये जलता हुआ बोर्ड तेरे ऊपर गिरता… तेरा चेहरा जल जाता… और शायद पूरा घर भी।"

मैंने डरते-डरते कहा –
"आंटी, मैं तो घंटी की आवाज़ से उठी थी। अगर वो घंटी ना बजती तो मैं सोई रहती और सब जलकर खाक हो जाता।"


उस पल मेरी आँखों से सिर्फ़ यही निकला –
"सुक़र है या अल्लाह… तेरा सुक़र है।"

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यह घटना मेरे लिए इबादत की तरह है… एक याद दिलाने वाली कि जब कोई नहीं होता, तब भी वो होता है। 🙏

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