Monday, 31 December 2018

बदलता हुआ हर साल

बदलता हुआ हर साल

हर साल के गुज़रते हर लम्हे को शुक्रिया
जो बदलता रहा हर साल
हर साल के बदलते हर शक़्स को शुक्रिया
जिसने बदला अपना नकाब हर साल
हर साल के बदलते हर रुख को शुक्रिया
हर साल के बदलते हर रात को शुक्रिया
हर साल के साथ पीया जहर हर साल
उस जहर की हर बूंद को शुक्रिया जिसने जिंदा रखा हर साल
हर साल बदले कई रिश्ते ,,टूटे और बिखरे
हर साल जुड़ते रहे हर बन्धन का शुक्रिया
टूटते बिखरते धागों का भी शुक्रिया
हर साल में जो बदलते हालात उनका भी शुक्रिया
हर साल जिसने गिराया उन ठोकरों का शुक्रिया
गिर के जब उठ गयी तो उन हौसलो का शुक्रिया
जिसने हमेशा उठाया औऱ थामा मेरा हाथ
बदलते वक़्त के साथ बदला बहुत कुछ
पर बदल न पाया मेरे हौसलो का साथ,,
हर साल ने बदला मुझको कई बार
हर चेहरे को भी परखा मैंने हर साल
फिर भी रह गया अछूता कुछ हर साल
हर उस खड़ी को मेरा तहेदिल से शुक्रिया
जिसने न बदले मेरे हालात
बदली दुनिया कई बार
हर साल के साथ बदले मेरे कई जज्बात
बस बदल न पाई प्यार वाली बात
दिल के साथ एक रहा हमेशा मेरा प्यार
हर साल के साथ बदली जीवन और प्यार की कई परिभाषा
पर न बदल पाया मेरे जीवन का सार
और मेरा प्यार
हर साल ने दी कई खुशिया और पीड़ा कई उपहार
शुक्रिया सभी उपहार को लिया जीवन में मैंने स्वीकर
कई आंसू पिए और कई मुश्कान को भी जीया लेकर उधार
हर साल ने बदले कई बार अपने त्योहार
हर गुज़रते हुए साल के साथ बदला मेरा जीवन कई बार
सीखा मैंने जीना हर साल के साथ हर बार
मर के भी सिखाया जीना हर साल ने मुझे कई बार
हर जाते हुए लम्हे को मेरा शुक्रिया
जो ले गया मुझसे सबकुछ मेरा उधार
जो लौटाया नही इसने मुझे एक भी बार
हर साल के साथ बदली मेरी कई तस्वीर
न बदली वो तस्वीर जो ताबीज़ बन गयी,
बस के मेरे रूह में मेरी जागीर बन गयी ,,
हर साल ने सिखाया मुझको जीना कई बार
जीती तो मैं रही लेकिन मरता रहा था कुछ
जो बदला नही बदलते हुए साल के साथ
बाकी सब बदलता रहा हर साल,,,
हर साल को मेरा तहेदिल से शुक्रिया
जो न बदल पाया मेरे जज़्बात
हर साल के गुज़रते हर लम्हे को शुक्रिया
जो बदलता रहा हर साल,,,।।

Tuesday, 18 December 2018

छांव न पाया कभी

छाव न पाया कभी

ममतामयी छाव न पाया कभी,,
इसलिए न जीना आया अभी,,।।
कैसी होती है वो मूरत किताबो में ही पढ़ी वो सूरत
असल में किसी ने दिखाया ही नही
इसलिए न जीना आया अभी,,

एक सूरत जरूर हा देखा था,,सही
किताबो में भी पढ़ा था,, कहीं
मंदिर में मूरत भी थी वही,,
हाँ देखा था धूप में कही छाव जैसी,,
वो ममतामयी सूरत थी कहीँ,,,
बारिश में हल्की पड़ाव जैसी
बस देखा पढ़ा,, न उसको जाना,,
इसलिए न अब तक खुद को पहचाना,,

वो प्यार वो दुलार न पाया कभी
इसलिए न प्यार करना आया अभी,,
थी धूप बड़ी इस दुनिया में,, जलते थे पाव मेरे भी
वो आँचल न सर पे आया कभी,,
हाँ धूप ने भी जलाया तभी,,

एक कसक इस दिल में बसी सी रही,,
बस आह बनके निकल न सकी,,
दिल दर्द से भरा सा रहा
कोई दर्द तक जा न सके,,
हाँ बन्द करके दिल को रखा तभी,,
खुद को अंदर इतना रुलाया
बाहर कुछ भी निकल न पाया,,
हाँ तभी आँखों से आँसू तक न आया कभी,,
ममतामयी छाव न पाया कभी,,।।