Wednesday, 30 May 2018

ज़िन्दगी







ज़िन्दगी

क्यों दर्द देती है ,ये ज़िन्दगी,
संभलती हूँ , फिर लड़खड़ा देती है , ये ज़िन्दगी,
सब है कमी क्या है मुझे,
फिर भी ना जाने क्या मांगती है ,ये ज़िन्दगी,

जिसे अपना मानो , जो अपने है,
जिनके लिए सारे सपने है,
क्यों वो अपने ही मेरे सपनो को नही समझते ,,
क्यों मुझे ठुकरा कर , फिर उठाने के लिए,
अपना हाथ बढाती है , ये ज़िन्दगी,

क्या गम है अपना , कुछ भी तो नही ,
दर्द दुसरो की वजह से हमेशा ही दे जाती है , ये ज़िन्दगी,
प्यार मिला हमेशा , अपनो और परायो से,
फिर भी ना जाने क्या तलाशती है , ये ज़िन्दगी,,

अपनी मासूम सी शरारतो से सबको करती हूँ परेशा,
कभी - कभी मुझे भी, अपनी ही मासूम शरारतो से परेशा कर जाती है , ये ज़िन्दगी,
अकेली सी सहेली , मैं खुद ही खुद की,
अंजानी सी पहेली , मैं दुनिया के भीड़ की,
क्यों मुझे भीड़ में भी अकेले होने का एहसास करा जाती है , ये ज़िन्दगी,
नफ़रत नही मुझे रौशनी से,
फिर क्यों प्यार है अंधेरों से,
कई गलतिया जो मैं भूल जाती हूँ, होती हूँ जब अंधेरो में,
याद दिला जाती है , ये ज़िन्दगी,
अच्छा नही लगता मुझे रोना,
फिर क्यों ,आँखों में नमी ला देती है , ये ज़िन्दगी,
रेत की तरह हाथों से फिसलती जाती है , ये ज़िन्दगी,
फिर भी मुझे बहुत प्यारी है , ये ज़िन्दगी,
क्योंकि ख़ुदा का दिया अनमोल तोहफ़ा है , ये ज़िन्दगी,,।।